दुखद
देखता हूँ मैं जिधर
बस कोलाहल और क्रन्दन है
सुखे अश्रुधार नयन के
खेत पडा कोई बंजर है।
भाव शुन्य स्वप्नो का आलम
बदहाली का मंजर है
मरणाशन है पडा मेधावी
सचिन आरक्षण वह खंजर है।
…..
©® पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
देखता हूँ मैं जिधर
बस कोलाहल और क्रन्दन है
सुखे अश्रुधार नयन के
खेत पडा कोई बंजर है।
भाव शुन्य स्वप्नो का आलम
बदहाली का मंजर है
मरणाशन है पडा मेधावी
सचिन आरक्षण वह खंजर है।
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©® पं.संजीव शुक्ल “सचिन”