दुआ से बड़ा क्या है…? कुछ भी तो नहीं…! 【शेर】 ज़िंदगी से बड़ी, कोई किताब नहीं… और दुआओं से बड़ा, कोई खिताब नहीं… © डॉ० प्रतिभा ‘माही’