दुआएँ
तुम्हारी
बददुआओं नें
इतनी दुआएँ दे दीं हैं
मुझे
कि
आज हँसता भी हूँ
तो आँसू बह निकलते हैं
क्या कहूँ
ये अपनों का
प्यार ही तो है
जो आँसू बनकर
कलेजे में कब्ज़ा किये
बैठा है
जाने कब से,
मौत के पहले
साथ नहीं छोड़ेंगे
ये
मरने के बाद
जब मेरी खुली आँखें
बंद की जाएँगी
तो भी वो सारी
बददुआएं
आँसू बनकर
आख़िरी
छलक जाएँगी
लौट जाएँगी
अपने मालिक के पास
जिन्होंने मेरे पास
इन्हें कैद कर रखा था
जाएँगी, हँसकर
मुझे छोड़कर
ये
बद दुआएँ
मैंने सभी को दुआएँ दी है
मेरे अपनों!
तुम्हें भी जी भरकर दी है मैंने
दुआएँ।
~~अनिल मिश्र,प्रकाशित