दुःख (पीड़ा)
दुःख ऐसी चीज नहीं है, जो कभी खत्म हो सके। यह किसी न किसी रूप में जीवन में विद्यमान रहेगा ही। इसलिए दुःख, पीड़ा, संकट इत्यादि को गले लगाना और इसे विकास के उत्प्रेरक के रूप में देखना ही समझदारी है। कला, संगीत और साहित्य का जन्म भी पीड़ा से ही हुआ है, क्योंकि मनुष्य के दर्द और कठिनाई को व्यक्त करने और संसाधित करने के यही उत्तम साधन है। पीड़ा के माध्यम से ही हम दूसरों से जुड़ सकते हैं और उन्हें अपने से जोड़ सकते हैं।
दर्द एक पहचान दिलाता है
दर्द ही इंसान बनाता है
हर दर्द को सलाम है मेरा
क्योंकि दर्द ही
इंसान को महान बनाता है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।