दीवार
दीवार से भाव साम्य सिर्फ भीत नहीं बल्कि आशियाना छ्प्पर आदि की मरम्मत से है।
दरकती दीवार के साये में बैठा हूँ,
मौत के पास जिंदगी लिए बैठा हूँ,
तुम तो दीवार गिराने पर तुले हो,
मैं तो दीवार बनाने के लिए बैठा हूँ,
दीवार से भाव साम्य सिर्फ भीत नहीं बल्कि आशियाना छ्प्पर आदि की मरम्मत से है।
दरकती दीवार के साये में बैठा हूँ,
मौत के पास जिंदगी लिए बैठा हूँ,
तुम तो दीवार गिराने पर तुले हो,
मैं तो दीवार बनाने के लिए बैठा हूँ,