दिव्यमाला
गतांक से आगे………
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उधर कन्हैया झूल रहे थे ,अपनी माँ के हाथों में।
हुए अचानक भारी कान्हा, सह न सकी माँ हाथों में।
मात यशोदा बिठा कान्ह को,अंदर आगई बातों में।
इसी वक्त वहाँ हुआ अंधेरा ज्यो होता है रातों में।
तेज बवंडर भारी स्वर से,फूटे कान, कहाँ सम्भव?
हे पूर्ण कला के अवतारी………..33
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तेज बवंडर बन कर उसने , धूल गुबार उठा डाला।
शोर शराबा इतना भारी, विध्वंस खूब मचा डाला।
उड़ा वेग से सब कुछ लीन्हा, पत्थर लोह उड़ा डाला।
भारी बनकर लेटे कान्हा, ऊपर उन्हें उठा डाला।
चीख पुकार मची वहां भारी,हे भगवान,.
.कहाँ सम्भव? 34
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अगले अंक में क्रमशः……
कलम घिसाई
9414764891