दिल में मोहब्बत हीर से हीरे जैसी /लवकुश यादव “अज़ल”
गुलिस्तां बागों का खिला है गुलदस्ता फूलों का,
दिल में मोहब्बत तुमसे वैसी हीर से हीरे जैसी।
ऐ खुदा मुझको अब कोई बताए आकर के,
मेरी तक़दीर है कैसी मेरी तक़दीर है कैसी।।
वो महलों की रानी मैं उसके दिल का राजकुमार,
ये संगम की धरती है सुन लो पावन इलाहाबाद।
मिले किस्मत से जब कान्हा को राधा वसुंधरा पर,
बताओ उसकी तस्वीर कैसी है उसकी तस्वीर कैसी है।।
नींद में परी के जैसी खिलती गुलाब के जैसी,
कान में उसके शोभा शीप के मोती जैसी।
ऐ खुदा मुझको अब कोई बताए आकर के,
मेरी तक़दीर है कैसी मेरी तक़दीर है कैसी।।
चाँद फ़ीका पड़ जाए चांदनी पूनम के जैसी,
कनक कुंडल है सोहे ललाट बिंदिया है चमकी।
एक शाम यहीं आ मेरे रहबर हम बैठे शहर,
तेरी आँखों में डूब जाए पूरा साहिर ए अज़ल।।
नाम तो है माँ की ममता की परछाईं जैसी,
काव्य कंचन लिखें आवाज श्रेया घोसाल जैसी
मिले किस्मत से जब कान्हा को राधा वसुंधरा पर,
बताओ उसकी तस्वीर कैसी है उसकी तस्वीर कैसी है।।
लवकुश यादव “अज़ल”
अमेठी, उत्तर प्रदेश