दिल भुलाना चाहता है – गजल
गजल दिल भुलाना चाहता है। – कोमल अग्रवाल
दिल अब उसको भुलाना चाहता है,
एक नया चेहरा बनाना चाहता है।
इश्क का हर शब्द आयात की तरह है
क्या हुआ जो एक बार फिर से गुनगुनाना चाहता है।
है बहुत मशहूर किस्से रोशनी के
अब अँधेरों मे एक शामियाना चाहता है।
की बहुत सी साजिशें हैं दोस्तों ने
दुश्मनों से दिल लगाना चाहता है।
ये तेरी महफ़िल का साहिब कैसा चलन है
हर शाखश मेरा दिल दुखाना चाहता है।
होती नही कमी आखिर किसके किरदार मे
क्यूँ हर कोई किसी को आजमाना चाहता है।
यहाँ दस्तूरए वफ़ा का जिक्र करता कौन है
हर कोई बस एक शाम बिताना चाहता है।
थक गए हैं सुनते सुनते दर्द सबके
कोई मिले तो पत्थर भी आँसू बहन चाहता है।
जुनून हैसियत जिंदादिली मोहब्बत सबके पास नही होती
कोई पागल ही तो हौसलों से दरिया सुखना चाहता है।
होता नही हर शाखश कोमल की तरह
जो दर्द मे भी मुसकुराना चाहता है।