दिल के टूटने की सदाओं से वादियों को गुंजाती हैं, क्यूँकि खुशियाँ कहाँ मेरे मुक़द्दर को रास आती है।
कभी लबों पे दुआएं आने से डर जाती हैं,
जैसे रात सुबह की आहट से थम जाती है।
तुझे पाने की आरज़ू, सुकूं साँसों में लाती है,
पर हक़ीक़त में ये दूरी, ख़ौफ़ज़दा कर जाती है।
ख़्वाब ये जहन में, नए सफर का साथ लाती है,
फिर उन राहों के गुम होने का, भ्रम भी फैलाती है।
दिल के टूटने की सदाओं से वादियों को गुंजाती हैं,
क्यूँकि खुशियाँ कहाँ मेरे मुक़द्दर को रास आती है।
बेबजह ये दर्द फिर आँखों से बरस जाती है,
और अंधेरों में वो रौशनी कहीं दूर मुस्कुराती है।
बंधने को मेरे हर पल में, वो मीलों का सफ़र कर आती है,
और लम्हों के हर पल को तोड़ कर जीत जाती है।
ख़्वाब की हर ताबीर को, वो धड़कनें नयी दे जाती है,
और धुंधली तस्वीरों को नए रंगों में रंगती नज़र आती है।
साया बनकर साथ वो खामोशी से निभा जाती है,
इनायतें क़िस्मत की कुछ ऐसे हीं बरस जाती हैं।
घरौंदे सपनों के ये साथ मिलकर बनाती है,
पर संग रहने का ख़्याल, अधूरे ख़्वाब की तरह आँखें भींगा कर जाती है।