दिल की बात
मैं एक बार फिर उपस्थित हूँ आप सभी के मध्य अपने मन की बात रखने, नहीं, हृदय की बात रखने मन की बात तो मोदी जी रखते हैं।मैं मोदी जी की नकल नहीं करता।मेरा अंदाज अलग है क्योंकि आपने सुना है 94.3माई एफ एम कहता है जियो दिल से।
भारत दलों का देश है या यूं कहें कि दलदल का देश तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।दलदल का तात्पर्य कीचड़।और किसी ने ठीक ही कहा है कमल कीचड़ में ही खिलता है।आप देख रहे हैं बहुत अच्छे से की कमल कैसा और कितना खिल रहा है।मुझे परेशानी इस कमल से नहीं है।परेशानी की जड़ तो भारत में फैला कीचड़ अर्थात दलदल है लेकिन विडंबना देखिए हमें कमल तो चाहिए दलदल नहीं और हम इस बात को समझ सकें कि दलदल के बिना कमल हो नहीं सकता।फिर ऐसे में एक दल के लिए महासंकट आ जायेगा।अगर कमल का समूलनाश हो जायेगा तो फिर हम इस कमल को देख नहीं पायेंगे।फिर पूजा में माँ सरस्वती को क्या चढ़ायेंगे।भक्तों के लिए एक विकट विपदा उत्पन्न हो जायेगी।इसलिए इस कमल की रक्षा करना हर भक्त का नैतिक और मौलिक कर्तव्य बनता है।भारत भगवान प्रधान देश भगवान ना करे ऐसी विपत्ति का सामना भारत को करना पड़े।
पर सुना है भारत में स्वच्छता अभियान जोर शोर से चल रहा है सब साफ मत हो जाए।मान्यवर केवल एक निवेदन है कि जनता के सपनों को साफ मत करियेगा नहीं तो भगवान भी आपको माफ नहीं करेगा।गुस्ताखी माफ।मेरा एक छोटा सा सुक्षाव है कि आप अगर शिक्षा पर बल देते तो शायद इस समस्या का हल देते।जागरूकता शिक्षा से आती है और शिक्षा का स्तर कैसा है ये आपसे बेहतर और कोई नहीं जानता।मुझे इस बात का खेद है कि आपके समाधान में छेद है।
मुझे सिक्के के दूसरे पहलू को भी देखना चाहिए नहीं तो पक्षपात का सुखद आरोप मुझ पर आसानी से लगाया जा सकता है।
हाथ के हाथ में कुछ है नहीं और जनता के हाथ कुछ लग नहीं रहा है।हाथ खुद जनता के सामने हाथ फैलाए खड़ा है।गुहार कर रहा है।पुकार कर रहा है कि हमारे हाथ में भी कुछ आने दो।एकता की आंधी से मोदी की लहर तक देश में राजनीतिक मौसम कुछ अलग ही रूप धारण किया हुआ है।इस बार विरोधियों के मानसून जमकर बरसेंगे।जो कि कमल के लिए उपयुक्त वातावरण निर्मित करते हैं।मौसम विभाग भी हाई अलर्ट घोषित कर चुका है।अब देखना है कि चूक किससे कहाँ होती है।48 के युवा राहुल कांग्रेस के साथ और बहू और बहुमत दोनों से वंचित है उनकी बारात।भाई बहन का प्यार गठबंधन का रक्षाबंधन कहाँ तक कर पायेगा। ऐसे में केवल आलोचना के बाण कहाँ तक लक्ष्य भेद पायेंगे ये देखना और भी जरूरी हो जाता है।इनकी समस्या दूसरों से कुछ ज्यादा ही गंभीर है एक कहावत है नंगा नहायेगा क्या और निचोड़ेगा क्या।जिसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है उसे भी प्रधानमंत्री के सपने आते हैं।मगर बिना हाथ के कुछ किया भी नहीं जा सकता है।कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बिना हाथ के एक से एक कारनामे कर देतें हैं लेकिन प्रतिशत बहुत कम होता है।अब ऐसा ही कारनामा हाथ वालों को करना पड़ेगा।जो उनकी शाख को बचाये और फिर से उनके”अच्छे दिन” आये।
दल कोई भी हो निर्बल नहीं है निर्बल है तो केवल जनता।
जिसे आस तो है पर विश्वास नहीं।
कोई बिना कहे चला जाता था और कोई कह कह के विदेश चला जाता है
समस्या अभी भी वहीं पर है मौजूद है केवल नाम और दल बदल गए।
वो समस्या से सरोकार नहीं करते
और आप कहते है हम जनता से प्यार नहीं करते
दुख बड़ा है कि बढ़ा है आप सभी बुद्धिजीवी स्वयं समझ सकते हैं।
मैं तो केवल एक आइना लेकर आया था कि मुझे वो अक्स नजर आए पर जनाब मेरा आइना ही टूट गया इस दलदल में।
सब दल भाजपा के खिलाफ है लेकिन कोई भी गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, मंहगाई, बलात्कार,भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं है।
जियो मेरे देश……..इस दलदल में
आप को दिखा हो तो मुझे अवश्य सूचित करें आपका आभार और कृपा होगी मुझे इस दल-दल को समझने में।
आशा से आपकी ओर अपनी दृष्टि किए हुए।
आंखें खोलिए जनाब-आदित्य बोल रहा हूँ
अब जाग जाइए कृपा निधान
आप सुन रहे हैं मेरी जबान-ये आदित्य की ही कलम है श्रीमान
पूर्णतः मौलिक स्वरचित लेख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.