दिल का मासूम घरौंदा
आज फिर स्याह रात उतर आयी
पूस का ठिठुरता माह गर्म होने लगा मेरे भीतर
बेचैनी भरा सन्नाटा नीरवता ओढ़े पसरने लगा
किन्तु विभावरी की स्याह तिमिर कोलाहल को
समाप्त कर कहीं हृदय को सुकून से भरने लगा
इसकी तरलता में कोई ख्वाहिशें जगा रहा
तो कोई मिटा रहा, पर बेनाम ख्वाहिशें मेरी बन्द पलकों में जो
करवटें लेने लगे और आज पुनः मैं अपने
दिल के मासूम घरौंदे में चहकने लगी ।
मेरी मासूमियत पुनः जवां होने लगी।
आज मैंने कल्पना की कूची से उसके संवेदना भरी दीवारों
पर रंग-बिरंगे सपनों की ढेर सारी तितलियाँ उड़ाया।
एक तितली सपनों की आकर मुझसे कहती,
आओ उड़ चलो निडर मेरे साथ,
क्यों बोझिल इतनी बोझिल हो, कब तक जमीं पर
एक परिधि के अंदर पड़ी रहोगी।
कभी तो खुले आसमान की सैर करो,
देखो न इसके विस्तार को,
इतना कि तुम्हारी स्थूल दृष्टि भी न माप पाये,
जहाँ से गुजरेंगे इंद्रधनुष बनाते जायेंगे,
वक्त बेवक्त मुरझाए फूलों को खिलाते जायेंगे,
मस्ती के पराग इकट्ठा कर हर दिशा में बिखेरते जायेंगें।
जहाँ उदासी है वहां ठहरेंगे,
और खुशनुमा अहसासों से भर देंगे
बादल को हृदय में भरकर,
छोटे छोटे टुकड़ों में उड़ा लाएँगे
और जगह जगह बरसा देंगे ,
सजा देंगे सूखती ,उधड़ती धरती को ।
सूखते, टूटते ,उदास पेड़ पुनः हरे होंगे।
सूखती उदास नदियाँ मासूमियत सा
बहाव लिये पुनःलबालब भर उठेंगी।
सहसा सपनों की तितली वापस
घरौंदे में आई और कहने लगी,
अभी तो तुम्हे अनगिनत सपने जगाने हैँ
किन्तु बाहर मौसम खराब है और विषाक्त भी,
एक भी जागा तो शीघ्र ही मिट जायेंगे
इसलिये ठहर जाओ, बिल्कुल ठहर जाओ,
स्थिर हो जाओ कुछ समय के लिये,ये दौड़ त्याग कर
सिमट जाओ खुद में, अंतहीन मुक्ति लिये,
हाँ! मुक्ति के लिये पहले
बंधन को महसूस करना जरूरी है।
पूनम समर्थ(आगाज़ ए दिल)