दिल और गुलाब
✒️?जीवन की पाठशाला ?️
मेरी कलम द्वारा स्वरचित मेरी चौथी कविता
विषय – दिल और गुलाब
गुलाब तेरा रंग रूप भी लाल
दिल तेरा रूप रंग भी लाल
गुलाब तुझमें है बड़ी नाजुकता
दिल तू संजोये बैठा है कोमलता
एक पत्ती टूटने पर गुलाब तू है बिखरता
एक चोट लगने पर दिल तू भी तो है बिखरता
गुलाब तू बनता ईश्वर के गले का हार -श्रृंगार
दिल तू भी ईश्वर को अर्पण करता अपने भाव का हार -आंसुओं की माला
गुलाब तू है प्रेम का प्रतीक -ऊर्जा का स्तोत्र
दिल तू भी तो है प्रेम में सरोबोर -ऊर्जा का स्तोत्र
गुलाब तु सजता सेज पर दिल के रूप में
और तुम दोनों मिलकर लिखते एक नई परिभाषा प्रेम की
और उस परिभाषा से तुम रचते एक युग का निर्माण
एक नए मेहमान के आगमन पर फिर खिलती दिल की पंखुड़ियां
बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा ?सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क ? है जरुरी …!
?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान