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28 Nov 2016 · 1 min read

दिल अपने को(गजल)

दिल अपने को हम समजा लेगे/मंदीप

दिल अपने को हम समाज लेंगे,
याद तुम्हारी में मन अपना बहला लगे।

दिखे ना दर्द आँखो का,
छुपकर आँसू हम बहा लेंगे।

दिए तुम ने जो जख्म दिल पर,
उस पर तन्हाई की मरहम लगा लेगे।

है कितनी नूर-ऐ-महोबत तुम से,
हम तो मर कर भी दिखा देगे।

ये महोबत नही ये ईबादत है मेरी,
मर कर भी तुम को सीने से लगा लेगे।

सान-ऐ-हिन्द में होगा जब भी जिक्र हमारा,
“मंदीप” की महोबत के ही किस्से सुनाये जायेगे।

मंदीपसाई

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