दिमाग
दिमाग
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वो अपनी माँ के साथ रहती थी।उसके पिताजी का दो वर्ष पूर्व देहांत हो गया था।अब माँ लोगों के घरों में बर्तन मांजती और वो खुद छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी।बस कैसे भी करके वह पढ़ना चाहती थी।
मगर मोहल्ले के कुछ लोंगों की आँखों में दोनों माँ बेटी खटक रही थीं।क्योंकि उन लोगों की नजर उनकी जमीन पर थी।उन लोगों ने दोनों को चरित्र हीन होने का प्रचार करना शुरू कर दिया।
सुन सुनकर भी दोनों ने धैर्य नहीं खोया।उसने अपना दिमाग चलाया और अपने मकान के सामने एक काल्पनिक नाम के साथ रिटायर्ड आई.पी.एस. का बोर्ड एक मजदूर को पैसे देकर लगवा दिया।
अब उसे कोई चरित्रहीन नहीं कहता।
अब उसे सूकून सा महसूस हो रहा था।
◆ सुधीर श्रीवास्तव