दिखने में इंसान मगर, काम सभी शैतान से
दिखने में इंसान मगर, कर्म सभी शैतानों से।
कैसे हम इंसान कहें, व्यवहार नहीं इंसानों से।।
धर्म कर्म नहीं इंसानियत, नहीं विवेक विचार ।
मानव होकर जान न पाए, मानवता का सार ।।
मानवता से हीन मनुज ही, इस धरती पर भार ।
इनके कर्मों से दुखी धरा, और मानव परिवार ।।
मानव होकर मानवता पर, चला रहे हथियार ।
हिंसा द्वेष अज्ञान अशांति, शैतानी व्यवहार।।
सत्य प्रेम करूणा के, संदेशों को न मान सके।
मानव होकर मानवता को,जो न पहचान सके।।
अज्ञान और अन्धकार मय जीवन ,जीना है बेकार।
सत्य प्रेम करूणामय जीवन है, मानवता का सार।।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी