दायरे से बाहर ( आज़ाद गज़ल संग्रह)
जीत कर भी आजकल मुझे हार लगता है
सुना सुना सा ये भरापुरा संसार लगता है।
इस कदर तन्हाइयां कर रही तीमारदारी
खाली ये कमरा ही अब परिवार लगता है ।
हूँ तो वर्षो से मैं इसी आँगन के आगोश में
खफ़ा खफ़ा सा क्यों दरो दीवार लगता है।
ज़िंदा हूँ जुदा हो कर भी ज़माने में जबरन
मगर सच कहूँ तो जीवन बेकार लगता है।
सुन कर तेरी बातें अजय हो गया यकीन
कि अपने आप से ही तू बेज़ार लगता है ।
-अजय प्रसाद