-दायरा
देखती हूं,
क्या क्या सोचती है इस उम्र में नारी!!
45 प्लस की हो गई कि वो मन से है हारी,
खुद में ही ठहराव लाकर थम सी जाती है,
अपने जीवन के खाते में डाल देती है”अब क्या बाकी है?”
बस अब जिंदगी तो काटनी है ऐसे ही निकल जानी है
पहनावे से लेकर खुद की प्रेजेंटेशन को
नजरअंदाज करने लग जाती है,
उम्र के इस पड़ाव पर बाहर सब कुछ
संतुष्ट से भरी नजर आती है,
पर अभी भी भीतर एक खोखलापन जारी है,
कुछ करने ,कुछ कहने के लिए स्त्री अपने मन से हारी है,
पर ऐसा नहीं,,, कुछ सोचती भी है इस उम्र में नारी
अब कुछ करने की बारी है,,,
जो छूट गया उसे पाना मुश्किल है पर ना मुमकिन नही
ऐसे ही हम विचार धारी हैं…..
नारी सब रिश्तो में रंग भरती है सब की जरूरत पूरी करती है,
भूले नहीं खुद से भी कोई रिश्ता है अब यह पूरी करने की तैयारी है,
अपने सपने को दे नया रास्ता यह सिलसिला अब जारी है
लोग क्या कहेंगे!!
लोग हसेंगे!! बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम भी कहेंगे!!
इससे नहीं रखो वास्ता,, नारी इससे नहीं रखो वास्ता,
गहराई से समझो नारी,, अपने कला में लाओ भारी दक्षता,
45 प्लस की हो गए तो क्या हुआ जीवन अभी भी बाकी है,
रहा में जो छूटे सपने, उन्हें लाने की अब तैयारी है,
घर तक सिमटा था दायरा वह बढ़ाना अभी बाकी है।
– सीमा गुप्ता,अलवर राजस्थान