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29 Jul 2021 · 2 min read

दादा जी का चश्मा

मैं और मेरे दादा जी…दोनो एक जैसे …जब मन होता चुटकुले सुनाते और जोर-जोर से हँसने लगते …कभी एकदम से भजन याद आ जाता तो ढोलक मेरे हाथ में होती…
उनका स्वर इतना सधा था कि अक्सर मैं ईश्वर की छवि में खो जाती थी उनको सुनते सुनते…
“भजो रे मन…..राम नाम सुखदायी”
जैसे ही वो भक्ति में डूब के गाते …पूरा वातावरण भक्तिमय हो जाता …
लखनऊ से अत्यधिक स्नेह होने के कारण आगे की पढ़ाई मैं यहीं से करना चाहती थी …दादा जी भी प्राइवेट स्कूल के प्रिंसिपल थे, जो कि अब रिटायर हो चुके थे। राय मशवरा चल रहा था कि क्या करना है मुझे आगे..कि सहसा मेरा ध्यान दादा जी की आँखों पर गया …
“अरे आपका चश्मा कहाँ है ?”
मैंने चिंतित स्वर में पूछा..
दादा जी थोड़ा हल्के से बोले…
“यहीं कहीं होगा बेटा”
सुनकर मैं निश्चिंत होकर दैनिक कार्यों में लग गई ।
घर में मैं और दादाजी ही रहते हैं। ५ वर्ष पूर्व पूरा परिवार एक हादसे में खत्म हो गया था। बस मैं और दादाजी बच गए थे। आर्थिक साधन के रूप में मेरी ट्यूशन्स थीं, जिनसे काम चल जाता था। इस वर्ष मैंने इण्टर पास किया था।
दादा जी को भी चिंता थी कि मेरा एडमिशन कहाँ होगा …
मैं थोड़ी चिंतित सी टहल रही थी …दादा जी कल से बिना चश्में के थे …
कहाँ गया आखिर ? मैं मन ही मन सोच में थी …
दोपहर को जब दादा जी के पास पहुँची तो उन्होने कहा..
“बेटा पालीटेक्निक में एडमिशन हो गया है तुम्हारा..”
“अरे सच!”
मैं खुशी से चीख पड़ी…
“जा अब मिठाई लेकर आ”
दादा जी ने प्यार से कहा।
“तो दादा जी फीस वगैरह कब देनी होगी मुझे?”
अचानक मुझे याद आया, इस महीने ट्यूशन वाले पैसे नहीं मिलेंगे, मेरे मन में थोड़ी मायूसी आ गई।
“वो सब मैंने रौशन से करवा दिया है”
(रौशन दादा जी के बचपन के मित्र थे), उन्होने हमेशा की तरह शांत स्वर में कहा।
मैं मिठाई लेने चल पड़ी…
लल्लन ज्वैलर्स की दुकान रास्ते में पड़ती थी… आज वो मुझसे मुखातिब था …
“सोनी बिटिया कहाँ चल दी?”
“अरे चाचा बस मिठाई लेने जा रही थी…”
“अच्छा तो ये लिफाफा दादा जी को दे देना…” कहकर उन्होने मुझे एक लिफाफा पकड़ाया…
मैं लेकर चल दी…
मिठाई लेकर आई तो भोग लगाकर मिठाई दादा जी को दी…तो याद आया लल्लन चाचा ने कुछ भिजवाया था …उत्सुकतावश मैंने पुड़िया खोली तो उसमें लिखा पढ़कर …आँख से आँसू बह पड़े…..
दादा जी ने अपने चश्में की सोने की कमानी बेच दी थी और दो चश्में के ग्लास…उस पुड़िया में ..
मेरी फीस भर चुकी ! मैं दादा जी के पास गई और उनके गले लगकर बहुत देर तक रोती रही…
“आपने चश्मा तुड़वा दिया..दादी की आखिरी निशानी..क्यों दादा जी ? ?
और दादाजी अपने हाथ से आंख पोंछते हुए पूजा घर की ओर मुड़ गए।

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

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