दहेज़ कर्ज या खुशी
विषय _ दहेज़ कर्ज़ या खुशी
शादी की शहनाई गूंजेगी मेरे घर में
मंगलगीत भी गाए जायेंगे
खुशियां आयेंगी मेरे घर में
और ढोल नगाड़े भी बजाए जाएंगे
धूमधाम होगी नाच गाने होंगे
बनेगी मिठाई और महक उठेंगे घर के कोने कोने
आई वो शुभ घड़ी बेटी को विदा किया
जैसे तैसे उसको भेजकर मन को समझा दिया
आंसुओ को लेकर खुशी चेहरे पर दिखाई
अब विदाई के बाद बारी दहेज की आई
लोग कहते हैं कि बहु क्या लाई
कितना सोना चांदी और कितने का सामान लाई
छोटी से छोटी चीज से लेकर
बड़े सामान का नाम लिखा दिया
लड़के वालो के मन में दहेज का लोभ बढ़ा दिया
कभी कभी समझ नहीं आता कि दहेज प्रथा बनाई किसने है
इस कुरीति को इतना आगे बढ़ाई किसने है
क्यों एक लड़की खाली हाथ ससुराल नहीं जाती
क्यों एक लड़की बिना दहेज़ के विदा नहीं हो पाती
ये दहेज़ लोभ को बढ़ाता है
इनके मांगने से इनका मान बढ़ता नहीं घट जाता है
झिझक महसूस नहीं होती इनको मांगने पर भी
क्योंकि इनके बोलने पर ही हर बात पूरी कर दी जाती है
बेटी वालो को अक्सर कमजोर समझा जाता है
फिर भी उन पर दहेज़ का दबाव डाला जाता है
दहेज़ देकर मां बाप लड़के वालो के आगे झुक जाते है
अपनी बेटी के सम्मान के लिए
वो रुक जाते है
ये दहेज़ कर्ज़ को चढ़ा देता है
अपनी बेटी के प्रति फर्ज़ को बढ़ा देता है
इसलिए शायद बेटी के होने पर खुशी कम मनाई जाती है
बेटी बोझ तले दबाती है बस यही बात जताई जाती है
लोग बदलाव खुद में नहीं लाते और दोषी लड़की को बताया जाता है।