दस्तक
शीर्षक:दस्तक
आज दस्तक दी हैं मेरे अंतर्मन से शब्दों ने
मैने अपनी लेखनी से रंग भरना चाहा शब्दो में
और लिख डाले भाव सारे कागज पर
जो घुमड़ घुमड़ कर मेरे अंतर्मन में थे बेचैन
फूल देख सोचती हूँ क्यो न आज लिखूँ उसपर लेखनी से
आज दस्तक दी हैं मेरे अंतर्मन से शब्दों ने
लिख डालूँ इसकी मुस्कुराहट पर भी
कितना मुस्कुराता हैं ये जानते हुए भी की उसका जीवन
क्षणिक है न जाने कोई आए और कर दे डाली से जुड़ा
और फिर भी देता है खुशबू उसी को जो तोड़ डालता हैं
आज दस्तक दी हैं मेरे अंतर्मन से शब्दों ने
लिख डालूँ उसी पर जो बिना जाने उसके मन के भाव को
मिटा देता है जीवन उसका तुरंत खिलते ही न जाने क्यों
महकाता जो बगिया हम सब की लुटाता हैं स्नेह
खिलता हैं मुस्कुराता हैं और बिखर जाता हैं
आज दस्तक दी हैं मेरे अंतर्मन से शब्दों ने
वही फूल चढ़ जाता हैं प्रभु चरणों में
और वही वीर शहीद के शव पर भी और कुछ तो
रह जाते हैं बस यूँ ही कहीं मिट्टी में पड़े पड़े
फिर भी फूल खिलता हैं मुस्कुराता हैं खुशबू फैलाता हैं
आज दस्तक दी हैं मेरे अंतर्मन से शब्दों ने
आज लेखनी खुश हैं मेरी उसपर जो चली
क्यों न लिखूं उसके दर्द को जो लुटाता हैं खुशबू से प्रेम
फूल अपने क्षणिक जीवन में बस मुस्कुराता ही रहता है
सीखना हैं उसी से खुश रहना जीवन में
आज दस्तक दी हैं मेरे अंतर्मन से शब्दों ने
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद
घोषणा:स्वरचित