दशहरे का संदेश
देश हमारा भारतवर्ष, इसका हर त्यौहार देता सीख और अपार हर्ष।
अपने ग्रंथ, वेद, पुराण, सब करते हैं यही बखान,
झूठ कभी छुपता नहीं, सच कभी झुकता नहीं।
हर इंसान में दोनों विराज, दानव – देवता एक समान,
संस्कार हमारे बताते, कौन करेगा दिल और दिमाग पर राज़।
राम और रावण दोनों ही थे ज्ञान के भंठार,
सीख लेनी, कैसे किया उन्होंने ज्ञान का जीवन में श्रंगार।
फैली कलयुग की छाया चारों ओर,
स्वार्थ और अहंकार के काले बादल, जिनका ना कोई ओर ना छोर।
दशहरे के शुभ अवसर पर, करें एक कोशिश नए जीवन की,
जलायें अपने भीतर के रावण को,
जलायें चिता अहम – अहंकार और स्वार्थ की।
हो दिवाली से नई शुरुआत, रिश्तों के नए उजाले की।
जियें और जीने दे सबको, नहीं बदल सकते दुनियाँ को, जब तक ना बदलें खुदको,
रहें खुश सबकी तरक्की में, अपनाए नई रस्मों को।
अपना वही, जो खुश हो अपनों की खुशी में,
ना ढूँढे हर वक़्त कमियाँ, हो गर्वित उनकी उन्नती में।
ग्रंथों, त्यौहार, वेद – पुराणों का यही है सार,
राम और रावण में फर्क़ समझो और बनो इंसान