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30 Oct 2016 · 1 min read

दशरथ मांझी को मेरा सलाम

क्या कमाल की दुनिया है यारो…
दशरथ मांझी जब अकेले ही पत्थर काट रहे थे तब कोई सरकारी गुलाम नही गया ..पूछने ?

कोई तो पूछता “ऐसा क्यों कर रहे आप ? में सरकार को अरजी देता हूँ , ये सड़क बनवाना सरकार का काम है,जो काम सरकारी सहयोग से चंद वर्षो मे संम्पन्न हो सकता है उसके लिए पूरा जीवन न घोलें आप l

अब जब पथ्थर तोड़ने में सम्पूर्ण जीवन घोल ही दिया तो क्या कहते है ये गुलाम ज़रा गौर करें…
“में जब भी उधर से जाता हूँ, रुक कर हाथ जोड़ कर सास्टांग दंडवत करता हूँ l” सू..
ति..
ये…
अरे फोटो खींचो भाई कोई इसका कल अखबार में इनकी करूँण रुन्दन का सचित्र वर्णन होगा l ?

“दशरथ मांझी – मेरा सलाम”

दुस्तंत्र,भयाह्वः,चट्टान के सामान अहंकार को खंड-विखंड कर देने वाला था वो माझी,
इस विभद्दस,कुरूप तंत्र को आइना दिखलाने वाला था वो माझी,
इस अचेत, निर्मम स्वभाव को परिश्रम के शौर्य से दफ़्न कर देने वाला था वो माझी, पद,महान,गौरव-गाथा झूठी,शान को तार-तार कर देने वाला था वो माझी,
हौसला,शाहस,फौलाद सा अडिग,
इन शब्दों को एक और मुकाम देंने वाला था वो माझी,
आदर्शवाद,और झूठे दर्शन-शास्त्र की झूठी उड़ान को पाँवो तले कुचल कर रख देने वाला था मांझी,
एक साधारण सा दिखने वाला “आम आदमी”था वो “दशरथ मांझी”
लोक-प्रशासन,सत्ता-संघर्ष राजनीति को
चुनौती देने वाला था वो माझी,
नतमस्तक,सास्टांग-दंडवत का ढोंग न करो ,
प्रह्लाद से ध्रुव बन तुम्हे इस योग्य भी कहां छोड़ने वाला था वो माझी,

मृदुल चंद्र श्रीवास्तव
-The Truth-

Language: Hindi
308 Views
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