दर्पण हूं मैं
इतना प्यार भरा हृदय में,तू ही बता मैं तोलूं कैसे
खामोश दर्पण बोल रहा है,मेरे उर की बोली जैसे।
प्रेम-यज्ञ सम प्रीत हमारी, पुष्प अर्ग का अर्पण हूं मैं
खुद में प्रीतम तुम्हें दिखाऊं,तेरे हृदय का दर्पण हूं मैं ।
चंचल नयनों से बतियाऊं, हृदय अशआर समर्पण हूं मैं
भाषा से क्या लेना तुझको, तेरी धड़कती धड़कन हूं मैं।
तेरी चाहत में मैं जागूं ,बेचैन विरह की तड़पन हूं मैं
नीलम तूभी हंसले गाले,नव खुशियों की थिरकन हूं मैं।
नीलम शर्मा