— दर्द —
क्या पानी पर लिखी
थी मेरी तकदीर तूने मेरे मालिक
हर ख्वाब बह जाता है
मेरे रंग भरने से पहले
शीशा नहीं है जो
उकेर दू कुछ चित्र
तूने वो कैनवास ही नहीं दिया
जिस पर अपने ख्वाब उतार दूँ
किस्मत के रंग मेरे
बड़े फीके लगने लगे
किस रंग से अब मैं
अपनी तकदीर सँवार लूँ
ख़ुशी के पल मिलते नहीं
गम से भरी जिंदगी में
अपने सारे दर्द कहाँ ले जाऊं
और जाकर यह दर्द किसे सुनाऊँ
अजीत कुमार तलवार
मेरठ