दर्द भरी मुस्कान
यूं तो है उसके लबों पर मुस्कान ज़रा-ज़रा ,
मगर दिल तो है दर्द से पुरजोर भरा -भरा ।
यह दिखावा इसीलिए भी ज़रूरी जहां के लिए ,
मरहम नहीं!लोगों के पास नमक है ज़रा-ज़रा ।
इक सज़ा की मानिंद जी रहा है वो जिंदगी ,
इंसान है वो कई आज़ारों से भरा- भरा ।
तक़दीर से रूठा हुआ और खुदा से भी खफा ,
है दुनिया की रंगिनियों से बेज़ार ज़रा-ज़रा ।
हर सु बेचैनी च्ंकि सुकून है उससे कोसो दूर ,
ख्वाइशों के तराजू में उम्र को पाया ज़रा-ज़रा ।
अब ऐसे में अपने ख्वाबों की ताबीर कैसे हो ‘अनु’ ,
जब रूह से क़ज़ा की दूरी है बस ज़रा-ज़रा ।