दर्द- ए- दिल
दर्द उठता , बढ़ता ,
बढ़कर फ़ुग़ाँ नही होता ,
कुछ इधर , उधर, कसमसाता ,
बयाँ नही होता ,
ज़ब्ते ग़म नही छुपता ,
अश्क बन छलक ही जाता ,
कुछ थी ज़माने की फ़ितरत ,
कुछ थी कुदरत की करवट ,
मसर्रत -ए – बहार सिवा मिली
‘अज़ाब -ए – ख़िजाँ -ओ-ख़ार ।
दर्द उठता , बढ़ता ,
बढ़कर फ़ुग़ाँ नही होता ,
कुछ इधर , उधर, कसमसाता ,
बयाँ नही होता ,
ज़ब्ते ग़म नही छुपता ,
अश्क बन छलक ही जाता ,
कुछ थी ज़माने की फ़ितरत ,
कुछ थी कुदरत की करवट ,
मसर्रत -ए – बहार सिवा मिली
‘अज़ाब -ए – ख़िजाँ -ओ-ख़ार ।