दरिया की लहरें खुल के – संदीप ठाकुर
दरिया की लहरें खुल के
आज गले लगती पुल के
सूरज भी बन सकते हैं
सारे जुगनू मिल-जुल के
शाम उतर आई आख़िर
आज बगा़वत पे खुल के
बारिश में दरिया के संग
मिट्टी बहती है घुल के
गुजरे पतझड़ के साए
पहने कोट नए गुल के
तन-मन भीग गया बरसीं
आंख घटा सब मिल-जुल के
प्यार बिका बाज़ारों में
सोने-चांदी में तुल के
चांद नदी से टकरा कर
घिसता जाए घुल-घुल के
संदीप ठाकुर
– Sandeep Thakur