दरवाजा
ऊपर वाले ने धरा को जब बनाया था
नहीं दरोदीवार,न दरवाजा बनाया था
भेजा था जब आदमी,गुर सिखाया था
जीने खाने के लिए,साधन जुटाया था
प्रेम अमन का रास्ता, उसने दिखाया था
चैन से रहना धरा पर, नहीं हिंसा द्वेष रखना
मेहफूज रखना नियामतें, नहीं किसी से वैर रखना
आदमी ने स्वार्थ में, धरती को बदल डाला
अंधाधुंध दोहन से, पर्यावरण बदल डाला
कर दिए टुकड़े धरा के, सीमाओं में बांध डाला
वंद कर दिल के दरवाजे, इंसानियत को रौंद डाला
धर्म नस्ल जाति रंग में, दुनिया ये सारी बंट गई
ऊपर वाले की हिदायत और नियामत मिट गई
सुरेश कुमार चतुर्वेदी