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13 Mar 2018 · 1 min read

दरख्तो के दिल

दरख्तो के दिल
——————————–

सोचता हूँ कि
क्या ?
दिल और दिमाग होगा ?
इन दरख्तो के पास ,
जब देखता हूँ,
गाव के बाहर के
बड़े बरगद को
या
स्कूल के उस
पुराने पीपल को ।
और एक पल के लिये
मान लेता हूँ कि
हाँ होगा,
तो फिर कौंधते
है लाखो सवाल
मेरे जेहन मे ।

कि क्या ये सोचते होंगे
कि वक्त ने छला है
इन्हे भी?

कि फिर तो
महसूस करते होंगे
अपनी य़ादो को ।

कि सोचते होंगे
कितने राही गुजरे
उनकी छाया से होकर?

कि क्या कोई मिला होगा ?
कोई ऐसा
ज़िसे ये सुना सके अपनी दास्तां।

कि किसी ने सुनना चाहा होगा
इनकी आपबीती,
सदियो पुरानी इनकी कथा ।

कि अब भी दबी हैं
यादे इनके अन्दर
वर्षों से मौन ।
और ढूढ रही है तरीके
बाहर आने की,
उन आवाजो कि तरह,
जो दबी रह जाती हैं
घरो कि चहारदिवारी मे,
और कभी कभी जान कर भी
अंजान बनी रहती है दुनिया …..
—————————————
✍️प्रद्युम्न

Language: Hindi
272 Views
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