दगा
मनहरण घनाक्षरी
दगा
मूरत लुभानी देखो,
सूरत सलोनी देखो,
प्रीतम के पीठ पीछे,
करती छलावा है।
बाहु पाश में झूमे ,
दोनों के साथ घूमें,
नहीं प्रीत ह्रदय में,
करती दिखावा है।
जग की न लाज आई,
खिली -खिली मुस्काई,
बंधनों को तोड़कर,
कैसा बहकावा है ।
सूनी -सूनी राह चल ,
दूसरों से घुल मिल,
प्रीत के अभिनय से ,
आय को बुलावा है ।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर (हि० प्र०)