*थोड़ा समय नजदीक के हम, पुस्तकालय रोज जाऍं (गीत)*
थोड़ा समय नजदीक के हम, पुस्तकालय रोज जाऍं (गीत)
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थोड़ा समय नजदीक के हम, पुस्तकालय रोज जाऍं
राह तकती हैं हमारी, जिन पुस्तकों पर धूल है
भूल वह हमको गई हैं, यह ही हमारी भूल है
भूली हुई कोई कहानी, पुस्तकों सॅंग गुनगुनाऍं
सो रही है पुस्तकें जो, जागना उनका जरूरी
हम पढ़ें सौ बार उनको, साधना तब सिद्धि पूरी
जिसने लिखी हैं पुस्तकें यों, शीश उसको हम झुकाऍं
पुस्तकों से मित्रता ही, विश्व में सबसे सही है
राह नूतन ज्ञान-अर्जन, की अकेली बस यही है
खिल-खिल उठेंगी पुस्तकें सब, दो कदम उन तक बढ़ाऍं
थोड़ा समय नजदीक के हम, पुस्तकालय रोज जाऍं
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451