थकान…!!
दिन का पहला अलार्म रोज नींद तोड़ जाता है,
याद दिला जाता है कि.. हम परदेश में है बाबू,
यहां नींद होने से पहले जागना,
अधूरी नींद में जैसे-तैसे तैयार होना,
कभी मिला तो नाश्ता करना या फिर खाली पेट ही ड्यूटी को भागना,
दफ्तर गर पास रहे तो पैदल हीं निकल पड़ते हैं,
नहीं तो दूर-दराज की बात हो तो साधन की तलाश में हाईवे को तकते रहते हैं ,
जैसे-तैसे धक्का-मुक्की खाकर ऑफिस की चौखट तक पहुंचते हैं तब जाकर थोड़ी-सी राहत की सांस लेते हैं,
ऑफिस में पहुंचते ही घमासान माहौल मिलता है..
वही भाग-दौड़, अफरा-तफरी,
इसकी टोपी, उसका सर,
एक फाइल से दूसरी फाइल,
इस पर ताने उस पर तंज ,
सीनियर का टशन..बॉस की दहाड़..
सब कुछ इतना फास्ट गुजरता है पता नहीं वक्त अपनी चाल से चलता है या फिर हाथ से फिसलता है..
ऑफिस की छुट्टी वाली घंटी बजते ही अपनी बंद बुद्धि जागती है,
घर को निकलने में फिर वही इंतजार.. फिर वही तकरार..
घर पहुंचते-पहुंचते हालत हो जाती है खस्ता..
शर्ट की हालत ऐसी हो जाए जैसे..किसी ने कूटा हो तगड़ा,
जैसे-तैसे बेडरूम में पहुंचकर सो जाते हैं उघड़े,
थकान इतनी कड़क हो जैसे आए हो पहाड़ तोड़ के…!!
❤️ Love Ravi ❤️