त्रिवेणी…
(१)
रुको, देखो, चलो…
जीवन तुम्हारा है..
अपनों को बेसहारा न करो.
(२)
धर्म, जात, ताज…
कोई कीमत नहीं तुम बिन..
इंसान हो तुम !
(३)
बजुर्गों की लाठी…
धरोहर हमारी..
आस्तित्व हमारा.
\
/सी.एम्. शर्मा
(१)
रुको, देखो, चलो…
जीवन तुम्हारा है..
अपनों को बेसहारा न करो.
(२)
धर्म, जात, ताज…
कोई कीमत नहीं तुम बिन..
इंसान हो तुम !
(३)
बजुर्गों की लाठी…
धरोहर हमारी..
आस्तित्व हमारा.
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/सी.एम्. शर्मा