तो इंसान हर इक गुनाहों मेंं होता।
गज़ल
काफ़िया- ओं
रद़ीफ- मे होता
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122…….122……122…..122
अगर दम न ‘ला’ की दफाओं मे होता।
तो इंसान हर इक गुनाहों मे होता।
न तेरा कभी बाल बांका भी होता,
अगर तू भी माँ की दुआओं मे होता।
नहीं मौत के मुँह में जाते हजारों,
असर कुछ अगर चे दवाओं मे होता।
कोरोना भी यारो ये फैला न होता,
न सरकार का मन चुनावों मे होता।
तू भी जान जाता निवालों की कीमत,
जो जन्मा अगर तू अभावों मे होता,
निशाना हमारा भी चूका न होता,
कि तीरे नजर जो कमानों मेंं होता।
जिसे चाहे जो भी सज़ा वो सुना दें,
ये पंचायतों और सभाओं में होता।
जो दुख दर्द इंसा गरीबों के लेता,
तो हर आदमी देवताओं में होता।
जो मुझको न मिलता कभी प्यार तेरा,
तो प्रेमी न तेरी पनाहों मे होता।
……..✍️ प्रेमी