तेरे संग रहना मजबूरी सी लगती है,
तेरे संग रहना मजबूरी सी लगती है,
तेरे संग जीना भी चाहा और मरना भी चाहा मगर अब तेरे संग मजबूरी सी लगती है
अगर समझ लेती तुम मेरा दर्द
तो हम तुम्हारा अहम समझ लेते,मगर अब तेरे संग मजबूरी सी लगती है
लंबी उम्र की दुआ (करवा चौथ का ढोंग) भी करती है
और जीने भी नहीं देती,
मगर अब तेरे संग मजबूरी सी लगती है
तूने अपनी ही सुनाई हमेशा,
सोच जरा ,
कभी सुनी मेरी भी कभी ..
भागता रहा हमेशा घर के लिए
तू जीती रही छूटे अपने घर के लिए,
जो घर है अब तेरा, माना कब है तूने उसे
सोचता हूं कभी कभी, दोनों घर धोखा ना दे दे उसे….
मगर अब तेरे संग मजबूरी सी लगती है
मगर अब तेरे संग मजबूरी सी लगती है…
उमेंद्र कुमार