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20 Oct 2020 · 5 min read

हाय रे मेरी किस्मत

पहला परिदृश्य
घर के बाहर आंगन में बैठे हुए, मैने मेरी श्रीमती को आवाज लगाते हुए कहा एजी सुनती हो, में अभी आता हैं थोड़ा बाहर रहा हूं । इतने में मेरा बालक बोला -पापाजी कहां जा रहे हो में भी साथ चलू क्या,मैने कहा नहीं बेटा मुझे टाइम लगेगा, इतने में अंदर से आवाज आई,हां जी चले जाइए मगर उसे भी साथ ले जाना पड़ेगा ,मुझे दिन भर परेशान करता है
सब आपकी करामात है, जो के आज तक में भोग रही हूं, सुनो उसे अलमारी से कपडे निकालकर पहना लेना तेल कंघी कर बढ़िया से तैयार कर ले जाना, लगना भी चाहिए कि मेरा सुपुत्र है ।आप तो निकम्मे हो आखिर क्या देखा था मेरे मां बाप ने तुम्मे मेरी तो किस्मत ही फूट गई ।
बाज़ार उसे कुछ खिला देना और उसके लिए कुछ फलफूल इत्यादि सामान साथ में लेते आना, बेचारा कितना दुबला हो गया । मेरा लाडला, बालक के सर पर हाथ फेरते हुए बोली ,इसके लिए खिलौने भी लेते आना टूट गए है बेचारे के उसे उसकी ही पसंद के खिलौने दिलाना आपकी नहीं।
मैने सिर हिलाते हुए हां कहा फिर पुन: बड़े ही प्यार से हमारी श्रीमति बोली – मेरे लिए ब्लाउस फीस ,चूड़ी,तथा एक साड़ी लेते आना ज्यादा कुछ फरमाइश नहीं करूंगी क्योंकि मुझे पता है आपके पास पैसा नहीं है अभी तो मेरे पास बहुत कपड़े है जो मेरे मायके बालो ने जीजा जी ने चाचा चाची ने ताई ताऊ ने भैया भाभी ने और मेरी दुलारी मां ने बहुत कीमती सामान भिजवाया है उसी से काम चला लूंगी । मेरी तो किस्मत फूटी है क्योंकि आप कभी मुझे और बच्चे को कुछ दिला ही नहीं पाते और हां सुनिए तो थोड़ा सा किराना भी लेते आना में लिस्ट बना देती हूं।मै सारी बाते सुनता गया एक कोने में बैठे बैठे फिर आवाज आई चले गए क्या मैंने बोला जी अभी तो हूं बोलती जाइए वो बोली अभी उस लिस्ट में सब्जी नहीं लिखी दिन भर काम में लगी रहती हूं थक जाती हूं हैरान हो जाती हूं तुमको क्या है दिन भर निठल्लों की तरह बैठे रहते हो हां और जल्दी आना क्योंकि दीपावली नजदीक आ गई अभी सारी साफ सफाई ,पुताई,इत्यादि काम करना बाकी है कब से कह रही हूं कुछ करते ही नहीं ।
फिर पुन: स्वभाव में परिवर्तन और बड़े ही नर्म स्वभाव में ठहाके मारते हुए बोली – कल हम लोग आपकी ससुराल यानी मेरे मायके चलेंगे मां जी का फोन आया था इस बार मैने आपके कपडे भी धोना कर इस्त्री कर रख दिए है
फिर में सुनते सुनते बोला अरे पगली में मार्केट की बात नहीं कर रहा था में तो बस ये बोला रहा था कि घर के अंदर घुटन होने लगी में खेतो को देखने और ताजी हवा लेने घर से बाहर जा रहा हूं
इतने सुनते ही मानो क्रोध में आंखे तिलमिला गई हो तीसरा नेत्र खुल गया हो और अन्दर ही अन्दर कुछ बड़बड़ाने लगी
इतने में हम चुपचाप घर से बाहर निकल गया और ईश्वर को धन्यवाद देने लगा कि हे ईश्वर जैसी बखेड़ा हम भोग रहे है बैसी तू भी भोगे ,कैसी है तेरी माया औरत में इतना तेज दिमाग क्यो बनाया
दूसरा परिदृश्य
मै बालक को साथ लेकर घर से कुछ कदम चला बालक खुश मिजाज में चलता हुआ सवाल पे सवाल किये , नए रंग बिरंगे ख्वाब देखते हुए उंगली पकड़े हुए बात करते हुए चल रहा था सामने चबूतरा था बोला पापा यहां इतने लोग क्यो बैठते है मैंने हंसकर कहा बेटा इनमें से कुछ घर से नहीं घरबाली से हैरान है,कुछ नशे से परेशान है ,कुछ तास जुए चौपड़ चुगली चांटी तेरे मेरे की लत में डुबकी लगा रहे है और जो बुजुर्ग लोग आखिरी पंक्ति में पीपल के पुराने पेड़ के नीचे मजे से खुश नुमा लिवाज में बैठे है वो अपने बेटा और बहू से परेशान होकर अपने दर्द को अपने साथियों में बांटकर हल्का कर मुस्कुरा रहे है ।
इतने में सरपंच साब की गाड़ी आते हुए दिखी बालक बोला -पापाजी ये कौन है इनसे सब लोग प्रणाम क्यो कर रहे है, इनके बाजू में अच्छे लिबाज़ में कौन बैठे है में बोला बेटा ये हमारे गांव के मुखिया जी है बहुत अच्छे इंसान है जो पहले बोटो की और अब नोटों की चर्चा बहुत करते है पहले अपना विकास, बाद गांव का विकास करते है इतने में बेटा बोला पापाजी बाजू वाले कौन है ये बता दो मै बोला बेटा बाजू वाले नेता जी है बेटा बड़े ध्यान से सुनने के बाद बड़ी उत्सुकता से बोला नेता जी क्या होता है ?
मै बोला बेटा जो रेत खेत खलियान झोपडी कागज तेल अनाज अपने पराए और गरीबों की लेट्रिंग खा जाए वो नेता होता है
बेटा बोला नेता कैसे बनते है चुनाव जीत कर नेता बनते हैं तथा बेटा नेता बनने के लिए बहुत पापड़ बेलने पड़ते है कोठा कोठा जाना पड़ता है जात पात का भेद किए बिना सभी के पांव पखारना पड़ता है सांची कम झूठ ज्यादा वादेकर चुनाव लडना पड़ता है और जीता हुआ इंसान नेता बन जाता है बालक बड़े ही ध्यान से सुनता हुआ चलता जा रहा था इतने में बोला पापा प्रजातंत्र क्या है?मै बोला बेटा अब प्रजातंत्र तो बचा ही नहीं उसकी जगह नेता तंत्र और रुपया तंत्र गया बेटा बोला वो कैसे
मै बेटा प्रजातंत्र जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा चलाया जाने बाला शासन था।अब नेता तंत्र नेता का नेता के लिए नेता के द्वारा चलाया जाने वाला शासन है उसी प्रकार रुपया तंत्र रुपया का रुपया के लिए रुपए के द्वारा चलाया जाने वाला शासन है
इतने में मेरा मित्र का फोन आ गया में बात करते करते घर आ गया घर आकार श्री मती जी की सेवा में हाजिरी लगाने लगा
तीसरा परिदृश्य
नवरात्रि के दिनों मंदिरो और देवी मां के पंडालों मे बहुत ही भीड़ लगी हुई थी | लोग पूजा आर्चना करने के लिये गये थे जिनमे बूढ़े कम जवान ज्यादा थे लोग माता रानी को कम और उन्हें ज्यादा देख रहे थे वो बहुत ही सुन्दर सुंदर नये नये छोटे छोटे नन्हे नन्हें कपड़े पहने हुयी थी जो कमाल कर रही थी |जिनमे महिलाये कम वो ज्यादा थी जो अलग अलग जोडे मे अपनी अपनी इच्छाये व्यक्त कर रही थी शायद पता नही नवरात्रि का, या वेलंटाइंडे का मजा ले रही थी |लड़के तो मंदिर मे नये नये कपड़े पहन कर सुबह से शाम तक धूनी रमा के अडे हुये थे जो बदल बदल कर कपडे ओर गाड़िया ला ला कर पहरा दे रहे थे न मालूम वह क्या ढूँढ रहे थे हर एक को बड़े ही ध्यान से सुंदर निगाहे से झाँक रहे थे |और ऐसा नही की लड़के ही निहार रहे थे नही वो भी सुंदर निगाहो से कातिल कर रही थी मै बार बार यही सोच रहा था कि ईश्वर मन मे होता है कि मंदिर मे|ईश्वर अमीर मे होता है या गरीब मे लोग ईश्वर के दर्शन करने जाते है कि सुंदर सुंदर अफसराओ के लोग बूढ़े मा बाप को छोड़कर क्यो मंदिरों में जाते है
लेेखक कृष्णकांत गुर्जर धनोरा
तह गाडरवारा (म.प्र.)
मोबाइल 7805060303

Language: Hindi
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