तेरे प्रेम से संपूर्ण मैं
साजन तेरा और मेरा बंधन अटूट है
हर पल मेरा श्रृगांर इसी से तो पूर्ण है
तेरे स्पर्श से माथा की बिंदिया चमकती है
सूरज की किरण जैसे ही उसे सजाती है
लाल सिंदूर की लालिमा इतनी गहरी
तेरे प्रेम से सजी मैं प्रेयसी हूँ तेरी
उफ!यह कजरा मेरे नयनों में बस कर
निंदिया चुरा लेता है मेरे यारा की ऐसे
नथ नटखट इतराती खुद पर इतना
साजन जब देखते टकटकी बांधे उसे
लाली होठों की बस प्रेम गीत गाती है
सजन को यूँही रिझाना जैसे जानती है
कानों का झूमका अपनी धुन में रहता
हौले से पिया को पास ही बुला लेता
साड़ी जो बांधी मन मोहने वाली ऐसी
सुंदरता खिलती मेरी और भी कितनी
हरी हरी चुड़ियांँ शोर इतना हैं मचाती
तुम आ जाओ प्रिय इंतजार हुआ है भारी
पायल शोर नहीं आज ही जो मचाती
तुम पास आ सुकून से बस प्रेमगीत सुनते
तेरे हर शब्द से धड़कन मतवाली होती
ओ पिया तूने ये जादूगरी कहाँ से सीखी
हर पल तेरा प्रेम मुझसे इतना गहराता
अपनी किस्मत की नजर ही मैं उतारती
आज चांदनी रात में आओ सब बिसराते
एक दूजे के प्रेम को बस महसूस करते
सुंदरता से भरी सादगी की मूरत कहते मुझे
प्रिया सांसों में बस पूर्ण करती तुम ही मुझे
हमारा समर्पण संपूर्ण हो मुस्काना सिखाता
प्रति छण जीवन भर संग का वादा कराता
तुम्हारे प्रेम से सोलह श्रृगांर कर मैं निखरी
हर जन्म तेरी रहूंँ ये दुआ बस रब से करती
स्वरचित एवं मौलिक
प्रियंका प्रियदर्शिनी
फरीदाबाद हरियाणा