“ तेरी लौ ”
ऐसी “लौ” जलाई तूने कि मेरा दिल कुर्बान हो गया,
अब न रहा यह मेरा दिल उस पर तेरा राज हो गया I
जिस पल का मुझे इंतज़ार था , वह पल भी आ गया,
सोलह श्रृंगार करके डोली में जाने का समय आ गया,
इतराती नदी का सागर में मिलने का समय आ गया,
गरूर से दूर तुझमें समाहित होने का समय आ गया I
ऐसी “ लौ ” जलाई तूने कि मेरा दिल बाग़- बाग़ हो गया,
ऐसी मोहब्बत सिखाई कि हर एक इंसान से प्यार गया I
सजी डोली देखकर सारी सखियाँ बैरी हो गई हमसे ,
“डोली के पहरेदार” देखकर दूर भाग गई क्यों हमसे ?
कमी गिनावें , वो उंगली उठावें , लांछन लगावें सबसे ,
“पिया” तुम ही अब उबारो दुखियारी की अरज तुमसे I
ऐसी “ लौ ” जलाई तूने कि मेरा दिल तुझपर कुर्बान हो गया,
“प्यार का दिया” ऐसा जलाया कि हर मूरत से प्यार हो गया I
यह अबला तेरी पैयाँ की धूल को “सिन्दूर” बनाकर तुझसे मनुहार करे,
माफ़ कर दो मेरे सैयाँ इस “ जहाँ ” को, तुझसे बारम्बार अरदास करे ,
तेरी पलकों की छाँव में रहूँ तमन्ना मेरी, तुझसे “ राज ” फरियाद करे ,
हर एक ” मूरत ” को गले से लगाकर मन मंदिर में बसाकर प्यार करे I
ऐसी “लौ” जलाई तूने कि मेरा दिल कुर्बान हो गया,
अब न रहा यह मेरा दिल उस पर तेरा राज हो गया I
बड़ी आस लगाकर डोली पर सवार होकर तेरे करीब आई हूं,
गुनाहों की पोटली अपने माथे पर सजाकर तेरे दरबार आई हूँ ,
अपने रिश्तों-नातों से मुहँ मोड़कर तेरे सुंदर दरवाजे आई हूँ ,
“राज” तेरी एक खूबसूरत झलक पाने के लिये तेरे पास आई हूँ ,
ऐसी “ लौ ” जलाई तूने कि मेरा दिल कुर्बान हो गया,
अब न रहा यह मेरा दिल उस पर तेरा राज हो गया I
देशराज “राज”