तेरी बंदगी में मुझको अल्लाह नजर आया
जानम मैं जब से तेरे अनजाने शह्र आया।
दीदार ए रब तेरी ही उल्फत में नज़्र आया।
देखा है जब से तुमको चाहा तुम्हें तभी से।
गुजरा तेरी गली से चिलमन में नज्र आया।।
माशूक के मिलन की चाहत लिये मैं फिरता।
ढूंढूं उसे जहां भी अल्लाह नज्र आया।।
क्यों ‘कल्प’ ढूंढते हो रब को यहां-वहां तुम।
मेरा खुदा मुझे बस तुझ में ही नज्र आया।।