तेरी आंखों की मस्ती
किसी के आंखों की मस्ती
किसी के बातों की बस्ती
जैसे कोई कागज की कश्ती
शायद है बे जुबान मूरत की हस्ती
जनाब हो गया है गुनाह पता नहीं
हम बेकसूर या गुनाहगार
अपने ही मकांं में मालिक या किराएदार
रचनाकार मंगला केवट होशंगाबाद मध्य प्रदेश