तेतर
अजीब लग रहा शब्द सुनकर
बूझो तो भला क्या है?
बूझ ना सको तो हमें बताना
कि करते चले बयां है।
तेतर वृक्ष की छाँव में खड़ी
वो आदिवासी युवतियाँ,
पूछने लगी- लोगे क्या बाबू
भरी पड़ी है टोकरियाँ।
मगर हमें कुछ समझ ना आया
क्या है वह तेतर?
हमने पूछा क्या है आखिर में
उस टोकरी के भीतर।
खिल खिलाकर हँस पड़ी सब
तेतर ना समझते बाबू,
‘आमचो बस्तर’ में रह कर भी
तेतर का न जानते जादू।
तेतर का नाम सुनते ही लोगों के
मुँह में आ जाते पानी,
कई- कई काम आती है यह तो
स्वाद का नहीं कोई सानी।
खोलकर दिखलाई टोकरी तो
विराजित थी इमली रानी,
अब तो जान गए ना मेरे दोस्तों
तेतर की पूरी कहानी।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
भारत भूषण सम्मान प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।