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22 Feb 2024 · 1 min read

तृष्णा का थामे हुए हाथ

एक शख्स कहा करता था
हाथ में सिमटे हैं जो क्षण
उन्हीं को जागीर समझना
सलवटों को सँवार कर
तैयार करो
जश्न के लिए
क्योंकि कल तो भ्रम से जन्मेगा
कानों में चाँद की लटकन पहनो
सजाओ कुछ सितारे
पेशानी पर भी
न जाने दो
मुस्कराहट का एक भी मौका
एक कतरा अनदेखा
खेलेगा आंख-मिचौली कभी।
मोह से बंधे रहना
तृष्णा का थामे हुए हाथ
एक दौड़ लगा लेना
इसी में मिलेगा
जीवन का विस्तार ।

टूटी साँसों पर
आज की उँगलियाँ फिराना
निस्तेज अतीत को अलविदा कह कर
आज के रंगमंच पर उतार देना
उस शख़्स का बयान था —
प्रतीक्षा का सूर्यास्त
आज ही कर देना
क्योंकि बाद कभी नहीं आता ।
आज का हमसफ़र
मेरा बाद बन गया ।

Language: Hindi
140 Views
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