तृष्णा का थामे हुए हाथ
एक शख्स कहा करता था
हाथ में सिमटे हैं जो क्षण
उन्हीं को जागीर समझना
सलवटों को सँवार कर
तैयार करो
जश्न के लिए
क्योंकि कल तो भ्रम से जन्मेगा
कानों में चाँद की लटकन पहनो
सजाओ कुछ सितारे
पेशानी पर भी
न जाने दो
मुस्कराहट का एक भी मौका
एक कतरा अनदेखा
खेलेगा आंख-मिचौली कभी।
मोह से बंधे रहना
तृष्णा का थामे हुए हाथ
एक दौड़ लगा लेना
इसी में मिलेगा
जीवन का विस्तार ।
टूटी साँसों पर
आज की उँगलियाँ फिराना
निस्तेज अतीत को अलविदा कह कर
आज के रंगमंच पर उतार देना
उस शख़्स का बयान था —
प्रतीक्षा का सूर्यास्त
आज ही कर देना
क्योंकि बाद कभी नहीं आता ।
आज का हमसफ़र
मेरा बाद बन गया ।