तू नर नहीं नारायण है
तू नर नहीं नारायण है
तू नर नहीं नारायण है।
यदि मनुष्य कर्त्तव्यपरायण है।
मानव में षड्गुण है अमूल्य,
मानवता की मर्यादा जिनका मूल।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भी
इसी मत को किया धारण है
वही वस्तुतः कर्त्तव्यपरायण हैं।
तू नर नहीं नारायण है !
यदि मनुष्य कर्त्तव्यपरायण है।
श्रीकृष्ण का अर्जुन को ज्ञान यही,
भगवद्गीता का कर्मयोग यही,
मृत्युलोक में मायाजनित इन
दुविधाओं का यही निवारण है।
तू नर नहीं नारायण है।
यदि मनुष्य कर्त्तव्यपरायण है।
मद, लोभ, मोहादि ये षड् विकार,
त्याज्य है न कर स्वीकार।
तुम्हारी ऊर्ध्वगति में बाधक,
तुम्हारे पतन का कारण है।
तुम्हे होना मात्र कर्त्तव्यपरायण है।
तू नर नहीं नारायण है।
यदि मनुष्य कर्त्तव्यपरायण है।
– डॉ० उपासना पाण्डेय