“तू-तू मैं-मैं”
“तू-तू मैं-मैं”
तू-तू, मैं-मैं हो रही
हर मन में बस रहे ‘हूँ’
समझ न रहे कोई भी
बेकार है ये ‘बू’
मर मिटने को तैयार सब
बस जरा-जरा में
लौट आओ कबीरा फिर से
अब इस धरा में।
“तू-तू मैं-मैं”
तू-तू, मैं-मैं हो रही
हर मन में बस रहे ‘हूँ’
समझ न रहे कोई भी
बेकार है ये ‘बू’
मर मिटने को तैयार सब
बस जरा-जरा में
लौट आओ कबीरा फिर से
अब इस धरा में।