* तू जो चाहता है*
कब तक फ़िक्र करता रहेगा ज़माने की
उसे तो आदत है बढ़ता देख, तुझे गिराने की
जब तू चाहता है तो क्या डर है तुम्हें
घड़ी आ गई है अब कुछ कर दिखाने की
उनकी तो चाह है तुझे दबाने की
ज़रूरत नहीं है तुम्हें उन्हें कुछ बताने की
बढ़ता चल अपने लक्ष्य की ओर
वो तो हर मुमकिन कोशिश करेंगे तुझे डराने की
बढ़ाना है तुझे अपनी चमक को
वो कोशिश करेंगे तुझे जुगनुओं से डराने की
चमकना है तुझे तो सूरज के माफ़िक़
ज़रूरत नहीं है तुम्हें ये सब को बताने की
कोई हंसे तुझपर क्या फ़र्क़ पड़ता है
ज़माने की तो आदत है दूसरों को सताने की
जबतक न मिले मंज़िल तबतक मुश्किल है
फिर होड़ लग जाएगी तुझे अपना बताने की
जो आज नज़रअंदाज़ कर रहे हैं तुम्हें
कल वही कोशिश करेंगे तेरे पास आने की
जिसने तुम्हें ख़ारिज किया कदम कदम पर
वही ज़िद करेंगे तुझे अपने पास बुलाने की
है कटु सत्य, चढ़ते सूरज को सलाम होता है
तू भी रख थोड़ा धैर्य अभी, अपनी बारी आने की
एक दिन तेरी मेहनत भी रंग लाएगी
फिर तुझे ज़रूरत नहीं पड़ेगी, किसी को समझाने की।