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10 Feb 2017 · 1 min read

तुम

तुम

अकुलाते मेघों की गड़गड़ाहट
अरण्य में मयूरों का कलरव
आकाश से जीवनी बरसात
धरती की बुझती प्यास
खेतों में बिछी गहरी हरियाली
अपरिचिता के केशों में अटकी बूँदें

जब संयोग ऐसा
होता है आस पास
हमेशा, याद आती हो तुम
भड़कती है मिलान की प्यास.

सुगन्धित आम के बौरों से लदे पेड़
गाँव को लौटते चरवाहे और गोरू
अपरचित ग्राम्या के चूल्हे से उठा धुआँ
आकाश का रक्त रंजित पश्चिमी कोना
सुरमई ढलती शाम, बसेरों में लौटते पखेरू

जब इन सबका
साक्षात्कार होता है
हमेशा, याद आती हो तुम
ऐसा हर बार होता है.

निशा के गहन आँचल में दुबका गांव
झुरमुटों से उनींदे झींगुरों की आवाज
‘धवल’ चाँदनी से भरा आँगन
सूनी आँखों में पल रहे कोमल स्वप्न
प्रतीक्षा में खोले किवाड़ बैठा मन

जब कभी रात का
सूनापन डसता है मुझे
हमेशा, याद आती हो तुम
ऐसा लगता है मुझे .

प्रदीप तिवारी ‘धवल’

Language: Hindi
950 Views
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