बातें जहान की करते हैं
बातें जहान की करते हैं
तुम हो सबसे जुदा जुदा
तुम हो सबसे अलग अलग
फिर क्यों ना तुम पर मर बैठूं
तुम हो सबसे सरल सरल
गालों का तबस्सुम उड़ा उड़ा
जैसे यौवन ने ली अंगड़ाई है
पलकें भी हल्की झुकी झुकी
निश्छल प्रेम की निशानी है
अधरो पर यौवन की लाली
गालों का गुलाबीपन प्यारा
गेसू तुम्हारे बिखरे बिखरे
जैसे कोई अनगढ़ मूरत है
वो चंचल चंचल चक्षु तुम्हारे
भाषा प्रेम की कहते हैं
बालों की लट को सुलझाना
क्या खूब अदा कातिलाना है
वो झटक के बालों को चलना
जैसे कलियों ने ली अंगड़ाई है
मुड़कर फिर देखने की अदा
दिल को घायल करने वाली है
वो अधखुले होठों का कंपन
बहुत कुछ कहना हो जैसे
खुलकर जब कहने को आते
बातें जहान की करते हैं।
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश