तुम वृक्ष हो हरा-भरा
तुम वृक्ष हो हरा-भरा
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पापा तुम वृक्ष हो हरा-भरा छाया देते,
हम सबको तपिश से तुम हे बचाते।
थककर जब हम हार है जाते,
आकर पथ हमको तुम ही दिखाते।
जीवन के अंधकार में तुम,
सूरज है बन जाते—-
तुम वृक्ष हो हरा-भरा छाया देते——
तूफानों में जब भी हम फंस जाते,
आकर के फंसे जाल से तुम ही बचाते।
पापा मेरे!हर मोड़ पर तुम साथ देते,
हम सबकी तुम ताकत बन जाते।
मुझमें तुम शक्ति का संचार हे भरते!
हम सब तुम्हारा नित गुणगान हे करते।
तुम वृक्ष हो हरा-भरा छाया देते—–
तुमसे ही बागवां के फूल है खिलते,
हम सब प्रेम भरे गुलशन में ,
मिलकर रहते।
हर पल घर का कोना खुश्बू से ,
महका करते।
घर मंदिर है बागवां का ,
पूजा हम जिसमें नित करते।
फूल की भीनी खुशबू से,
आंगन भर जाते!!!
तुम वृक्ष हो हरा-भरा छाया देते——-
हम सबको तपिश से है बचाते——-
सुषमा सिंह *उर्मि,,
कानपुर