तुम मेरे ख़्वाबों में न और अब से आया करो
तुम मेरे ख़्वाबों में न और अब से आया करो
अपनी रातों को अपने महल में बिताया करो।
मेरे कमरे की छत से आसमान दिखता है
मेरे बदहाल घर में तुम ना रातें ज़ाया करो।
फिर भी गर ज़िद है तुम्हें ख्वाबों में आने की
कान के पीछे ज़रा सुरमा तुम लगाया करो।
कितना दिलकश है तुम्हारा ये बदन जानेजां
इसे मलमल के ही बिस्तर पे तुम सुलाया करो।
तुम अपने चेहरे पे पर्दा सजाओ ज़ुल्फ़ों का
अपने चहरे से कभी पर्दा ना उठाया करो।
आए जो दिल में तेरे क़त्ल का ख़्याल मेरा
यूंही नज़रों को सिर्फ़ एक दफ़ा झुकाया करो।
अब मेरे बस में नहीं मेरे दिल के अरमां ये
तुम ही ख़्वाबों में आके इनको समझाया करो।
जॉनी अहमद ‘क़ैस’