तुम भस्मा वाली बाढ़ प्रिये
जीवन अब होता जाता है, समय के
माफिक गाढ़ प्रिये।
मैं राप्ती के रेता सा हूँ ,तुम भस्मा
वाली बाढ़ प्रिये।
तुम भस्मा के डीह सी सूखी हो,
मैं आमी ताल सा डूबा हूँ।
तुम भस्मा वाली पुलिया हो,
मैं पंचायत भवन अजूबा हूँ।
मैं बंधे किनारे सा डूबा ,तुम देउरिया
मौजा आबाद प्रिये।
मैं राप्ती के रेता सा हूँ, तुम भस्मा
वाली बाढ़ प्रिये।
तुम कटयां वाला रास्ता हो,
मैं मंदिर वाली राह प्रिये।
तुम भीटहाँ सी सुरक्षित ठहरी,
मैं भस्मा सा तबाह प्रिये।
अब हर रस्ते पर आ पहुँची है ,यह
भयावह बाढ़ प्रिये।
मैं राप्ती के रेता सा हूँ , तुम भस्मा
वाली बाढ़ प्रिये।
तुम हाथी के दाँत सी हो सफेद,
मैं काला हूँ हाथी के तुण्ड।
तुम चारो ओर से आबाद हुई,
मैं गाँव के माफ़िक हुआ मैरुण्ड।
सावन – भादो अब जा लौटे और आ
जाये आसाढ़ प्रिये।
मैं राप्ती के रेता सा हूँ , तुम भस्मा
वाली बाढ़ प्रिये।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी